बेमौसम की बारिश, ओलावृष्टि और तेज आंधी की मार से गेहूं की फसल को बचाने के लिए धान की पराली सबसे बड़ा सुरक्षा चक्र बनकर सामने आई है. पंजाब में पराली ने हजारों किसानों की फसल को मौसम की मार से बचा लिया. लुधियाना स्थित पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU) के ताजा अध्ययन ने इस पर मुहर लगा दी है कि भविष्य में पराली की मदद से गेहूं की फसल को मौसम की मार से बचाया जा सकता है.
अध्ययन में सामने आया है कि जिन किसानों ने गेहूं की बिजाई से पहले अपने खेत में धान की पराली को जोत दिया था या कहें कि पराली को कुतर कर जमीन में मिला दिया जाता था, उन खेतों में तेज वर्षा, ओलावृष्टि और आंधी का फसल पर कोई असर नहीं हुआ. इसके विपरीत जिन खेतों में पराली को जलाकर या अन्य पारंपरिक तरीके से गेहूं की बिजाई की गई, वहां फसलें बिछ गई हैं, और बर्बाद हो गई हैं. उन किसानों के साथ हुआ जिन्होंने गेहूं की बिजाई सरफेस सीडिंग-कम-मल्चिंग (पराली को कुतर कर जमीन में मिला देना या खेत में जोत देना) तकनीक से की.
इन खेतों में गेहूं की फसल को कोई नुकसान नहीं हुआ है. इसके विपरीत जिन खेतों में पारंपरिक तरीके से बिजाई की गई वहां फसल को काफी नुकसान हुआ है. यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों के अनुसार, जिन खेतों में पराली को कुतर कर जमीन में मिला दिया था, उन खेतों में पानी को जल्दी सोख लिया और फसल को नुकसान नहीं हुआ. ऐसे खेतों में गेहूं की फसल की जड़ें और तना खराब मौसम के दौरान और भी मजबूत हो गया और इसी वजह से इन खेतों में खराब मौसम में भी गेहूं की फसल लहलहा रही है और पकने के लिए तैयार है.
मशीन की कीमत 70-80 हजार रुपए
पराली की वजह से फसल को अधिक वर्षा में भी जरूरत के मुताबिक नमी मिली और ऐसे खेतों में बेमौसम बारिश से गेहूं की फसल को नाममात्र ही नुकसान हुआ. पराली ने जमीन पर एक परत बना दी और इसी वजह से गेहूं की फसल को उतनी ही नमी मिली जितनी उसको जरूरत थी. साथ ही गेहूं के खेतों में खरपतवार भी नहीं बन पाई और धीरे-धीरे इस पराली ने कंपोस्ट होकर खाद बनना शुरू कर दिया. एक्सपर्ट्स के मुताबिक सरफेस सीडर तकनीक के लिए बनाई गई इस मशीन की कीमत मात्र 70 से 80 हजार रुपए के बीच है, और किसानों के आम ट्रैक्टर पर ही ये मशीन फिट हो सकती है, जबकि 1 एकड़ पर इस मशीन का इस्तेमाल करने के लिए मात्र 2 लीटर डीजल ही खर्च होता है.
पराली का किसान ऐसे कर रहे इस्तेमाल
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट डॉक्टर जसवीर सिंह गिल ने खेतों में सरफेस सीडर तकनीक से बनी पराली की परत को दिखाया और दिखाया कि कैसे ये पराली ही बेमौसम बरसात और तेज आंधी तूफान के दौरान फसल की सबसे बड़ी रक्षक बनी है और धीरे-धीरे ये पराली कंपोस्ट होकर खाद बनती जा रही है.
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट डॉक्टर जसवीर सिंह गिल ने कहा, जहां एक और पंजाब के ग्रामीण इलाकों में किसानों के चेहरे पर मायूसी छाई है कि उनकी फसल को बेमौसम बरसात और आंधी-तूफान ने पूरी तरह से जमीन पर बिछा दिया है. फसल नष्ट होने की कगार पर है तो वहीं ऐसे समझदार किसान जिन्होंने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों की बात मानते हुए सरफेस सीडर तकनीक से पराली को खेतों में ही इस्तेमाल करके गेहूं की फसल लगाई थी, उनकी फसल पर मौसम का कोई खास असर नहीं हुआ है. फसल खेतों में लहलहा रही है. ऐसे किसानों ने पंजाब के और किसानों को भी अपने तजुर्बे का हवाला दिया और सीख लेने की बात कही.
पराली को जलाए बिना हो सकता है इस्तेमाल
लुधियाना के इस्सेवाल गांव से खेत को दिखाते हुए किसान गुरिंदर सिंह ने बातचीत में कहा कि, पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के फसल विज्ञान विभाग के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉक्टर मक्खन सिंह बराड़ के मुताबिक उनके पास काफी मैन्युफैक्चर है, जोकि डिमांड के आधार पर इस मशीन को किसानों के लिए बनाने को तैयार है. किसानों का अवेयर होना पड़ेगा.
उन्होंने मशीन को दिखाते हुए पूरा डेमो दिया और समझाया कि कैसे इस मशीन के जरिए पराली को आग लगाए बिना ही उसका इस्तेमाल समझदारी के साथ किया जा सकता है. धान की कटाई के दौरान ही गेहूं की फसल की बिजाई भी साथ-साथ की जा सकती है और ऐसे में पराली न जलाने से वातावरण भी सुरक्षित रहेगा और किसानों को वक्त और पैसे की बचत भी होगी.
किसान खुद भी ले सकते हैं तकनीक की जानकारी
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉक्टर सतबीर सिंह गौशल के मुताबिक पंजाब में करीब 20 जिलों में किसानों को अवेयर करके कुछ खेतों में इसी तकनीक के हिसाब से गेहूं की फसल लगवाई गई थी जोकि मौसम की मार के बावजूद जस की तस खेतों में ही खड़ी है और ऐसे में यूनिवर्सिटी विशेषज्ञों का प्रयास है कि जल्द से जल्द किसानों को इस तकनीक के बारे में अवगत कराया जाए और अगर किसान चाहे तो वो खुद भी यूनिवर्सिटी को अप्रोच करके सरफेस सीडिंग तकनीक और मशीन के बारे में जानकारी ले सकते हैं.
धान की पराली को किसान लगा देते हैं आग
पंजाब के ज्यादातर किसानों को ये लगता है कि पराली को जलाना ही आखिरी समाधान है, लेकिन सरफेस सीडिंग और मल्चिंग तकनीक का इस्तेमाल कर रहे किसानों ने इस बात को गलत साबित किया है. ऐसे में वो पराली जिसे किसान अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते हुए तुरंत ही धान की कटाई के बाद आग के हवाले कर देता है. वहीं पराली खराब मौसम, आंधी-तूफान और बेमौसम बरसात के दौरान गेहूं की फसल की ढाल बनकर किसान का सबसे बड़ा रक्षक बन सकती है.